क्रिप्स मिशन क्या था
सन 1942 में जब अंतरराष्ट्रीय युद्ध की शुरुआत हो चुकी थी। दक्षिण पूर्व एशिया में ब्रिटेन को हार का सामना करना पड़ा था, और जापान का आक्रमक रवैया से ब्रिटेन भयभीत था। जापान की हवाई सेना ने कई स्थानों पर हमले भी किए थे। इन परिस्थितियों में ब्रिटेन को भारत से सहायता की आवश्यकता थी। चूंकि प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीय धोखा खा चुके थे तो वह वर्तमान परिस्थितियों में सहायता करने के इच्छुक नहीं थे। ब्रिटेन पर अमेरिका रूस और चीन का दबाव था कि वे भारत का समर्थन प्राप्त करें। इस समर्थन को प्राप्त करने के लिए ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल द्वारा मजदूर नेता सर स्टेफर्ड क्रिस्प को मार्च 1942 में समर्थन प्राप्त करने के लिए भारत भेजा गया।
क्रिस्प ब्रिटिश युद्ध मंत्रिमंडल के सदस्य थे तथा उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का सक्रियता से समर्थन किया था। जिस कारण उन्हीं के नेतृत्व में यह दल भेजा गया था। इसी कारण इसको क्रिस्प मिशन कहा गया। भारतीयों द्वारा केवल इस शर्त पर समर्थन देना स्वीकार किया गया कि भारत को ठोस उत्तरदाई शासन का त्वरित हस्तांतरण कर दिया जाएगा तथा युद्ध के बाद भारत को पूर्ण आजादी देने का वचन दिया जाएगा। हालांकि क्रिस्प मिशन और भारतीयों के बीच वार्ता विफल हो गई।
क्रिप्स मिशन की योजना के प्रमुख प्रस्तावः
• डोमिनियन के दर्जे के साथ एक भारतीय संघ की स्थापना की जाएगी जो कि राष्ट्रमंडल के साथ संबंध तय करने के लिए स्वतंत्र होगा साथ ही संयुक्त राष्ट्र व अन्य अंतर्राष्ट्रीय निकायों में भागीदारी स्वनिर्णय से तय करेगा |
• युद्ध की समाप्ति के बाद एक नए संविधान का निर्माण करने के लिए संवैधानिक सभा गठित की जाएगी| इस सभा में सदस्य, आंशिक रूप से प्रांतीय सभाओं के द्वारा तथा आंशिक रूप से राजाओं द्वारा नामित किये जायेंगे|
• ब्रिटिश सरकार नए संविधान को निम्नलिखित शर्तों पर ही स्वीकार करेगी:
(क) जो भी प्रान्त संघ में शामिल नहीं होना चाहते, वह अपना अलग संघ और अलग संविधान निर्मित कर सकते हैं | देशी रियासतों को भी इसी प्रकार का अधिकार होगा।
(ब) नयी संविधान निर्माता सभा और ब्रिटिश सरकार शक्तियों के हस्तांतरण और प्रजातीय व धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा के मामले आपसी समझौते द्वारा तय किये जायेंगे |
• उपरोक्त व्यवस्था होने तक भारत की सुरक्षा सम्बन्धी दायित्व ब्रिटेन के होंगे। गवर्नर जनरल का पद यथावत रहेगा।
क्रिप्स मिशन कीअसफलता के कारण:
क्रिप्स मिशन के प्रस्ताव को भारतीय राष्ट्रवादियों ने अस्वीकृत कर दिया। विभिन्न दलों तथा समूहों ने अलग-अलग आधार पर इन प्रस्तावों का विरोध किया।
कांग्रेस ने निम्न आधार पर प्रस्तावों का विरोध किया-
- भारत को पूर्ण स्वतंत्रता के स्थान पर डोमिनियन स्टेट्स का दर्जा दिया जाना।
- देशी रियासतों के प्रतिनिधियों के लिये निर्वाचन के स्थान पर मनोनयन की व्यवस्था होना ।
- प्रांतों को भारतीय संघ से अलग होने के लिए व्यवस्था करना।
- सत्ता के त्वरित हस्तांतरण की योजना न होना तथा प्रतिरक्षा के मुद्दे पर ब्रिटेन पर निर्भरता ; गवर्नर-जनरल की सर्वोच्चता पूर्ववत बनाये रखना ; तथा गवर्नर-जनरल को केवल संवैधानिक प्रमुख बनाने की मांग को स्वीकार न किया जाना।
मुस्लिम लीग द्वारा अस्वीकार करना
मुस्लिम लीग ने भी क्रिप्स मिशन के प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया तथा इसके लिये निम्न तर्क दिये-
- एकल भारतीय संघ की व्यवस्था मुस्लिम लीग को स्वीकार्य नहीं था।
- मुस्लिम लीग की पृथक पाकिस्तान की मांग को स्वीकार नहीं किया गया था।
- नयी संविधान निर्मात्री सभा के गठन की प्रक्रिया था आधार उसे स्वीकार्य नहीं था।
- प्रांतों के संघ से पृथक् होने तथा अपना पृथक् संविधान बनाने की जो विधि निर्धारित की गयी थी, उससे भी लीग असहमत थी।
महात्मा गाँधी ने क्रिप्स प्रस्तावों पर टिप्पणी करते हुये कहा कि- "यह आगे की तारीख का चेक था, जिसका बैंक नष्ट होने वाला था।" जवाहरलाल नेहरू ने क्रिप्स प्रस्तावों के संबंध में कहा कि- "क्रिप्स योजना को स्वीकार करना भारत को अनिश्चित खण्डों में विभाजित करने के लिये मार्ग प्रशस्त करना था।"
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